मेरे साथ जो स्त्री रहती है
वो सोती है, उसके सपने जागते हैं.
वो रोती है,
उसके सपने झरते हैं.
वो सीने से लगती है,
हिदायत देती सी लगती है,
कि उसके सपने न मरोड़ूँ.
मैं आदमी हूँ,
मेरा दम्भ
उसके सपनों पे धाड़ से पड़ता है
छनाक! उसके सारे सपने टूट जाते हैं.
वो एक आस लिए
फिर रोटी संग सपने बेलती है
चूल्हे पे आंच देती है,
कि मैं कायर किसी दिन
मर्द बनूँगा
और उसके सपने नहीं तोड़ूंगा.
मैं आदमी हूँ,
सभ्यता के आदि से कायर ही हूँ!