नाहक ही हक़ की बातें हैं
नाहक ही हक़ का किस्सा है
जिनके घर में लाठी है
सब उनका ही हिस्सा है.
डूब मरे जो कहने पहुंचे
कुछ हमको भी मिलना है
लोकतंत्र में 'लोक' है हम
हमसे देश चलना है.
देश चलाने वालों ने
बदला अपना नाम
बदली अपनी कदकाठी
न बदला काला काम.
कई किस्सों की आज़ादी
दो हिस्सों में बंट गई
एक हिस्से में रोटी है
एक की आंते कट गईं.
मैं कहता हूँ बंद करो
ये लड़ना-भिड़ना, मरना-मिटना
बारूद उठाओ ख़त्म करो
जो नाहक हक़ का किस्सा है.
लाठियां तोड़ छीन लो सारा,
जो तुम्हारा हिस्सा है.
राख उठाओ अपनी खुद ही
खुद का जीवन अंत करो.
युद्ध करो, छीनो, ले लो
या युद्ध में ही अंत हो.
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