कटे उलझे से लफ्ज़ डायरी के
जैसे कुछ लिखना भी चाहते हों
मिटाना भी.
याद है कोई
जो बरबस आ जाती है
और मैं उसे मिटाना भी चाहता हूँ.
--***--
तुम आके तिनके से मुझे निकाल लेना,
ये शहर कुआं है कोई
जिसमें गिर के मैं डूब गया हूँ.
--***--
बचपन से ख्वाहिश थी कोई
किसी परी से इश्क़ होगा.
तुमसे हुआ
और देखो, तुम्हारे पर उग आये,
सर पे मुकुट सज गया.
...और एक दिन तुम परी सा उड़ गए,
अपने सफ़ेद मुलायम पंखों से.
सपना था शायद कोई,
शब के जाते वो भी गया.
--***--
ज़हर था कोई जो खाया था
तुमने दुश्मनी निभाने जो दिया था.
चलते-फिरते कोमा में हूँ
बोलता हूँ, सुनता हूँ, समझता नहीं.
क्या नाम कहा बताया था
तुमने उस ज़हर का? - इश्क़.
बड़ा अजीब ज़हर है!
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