तुम ऐसी जकड़न हो
जो छूटे तो परेशानी
न छूटे तो तेरे वजूद तले दबा रहूँ.
खुल भी जाऊँ गर
एक साहिल हूँ
जिसकी मंजिल नहीं
दरिया के दर बह जाऊँ.
तुम ऐसी जकड़न हो
जो ज़हर हो
मीठा-मीठा, मद्धम-मद्धम.
बस करो, मत जकड़ो
सूरज सा कल सुबह तेरे दर चला आऊंगा.
साँझ गया सुबह और कहाँ जाऊंगा?
जो छूटे तो परेशानी
न छूटे तो तेरे वजूद तले दबा रहूँ.
खुल भी जाऊँ गर
एक साहिल हूँ
जिसकी मंजिल नहीं
दरिया के दर बह जाऊँ.
तुम ऐसी जकड़न हो
जो ज़हर हो
मीठा-मीठा, मद्धम-मद्धम.
बस करो, मत जकड़ो
सूरज सा कल सुबह तेरे दर चला आऊंगा.
साँझ गया सुबह और कहाँ जाऊंगा?