सड़कनामा
प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
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Monday, May 6, 2013
रोज़गार और माँ
हर दफा घर से निकलते
पोंछना चाहता हूँ
तेरे आंसू.
हर रात,
सिरहाने तेरा हाथ
तकिया बना नज़र आता है.
रोटियों को अलट-पलट
देखता हूँ कई बार.
कि तेरे लम्स का कुछ एहसास हो.
हर दिन,
घर आना चाहता हूँ 'माँ'.
लेकिन क्या करूँ,
रोज़गार भी एक बड़ा मसला है.
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