प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Sunday, October 27, 2013
Monday, October 21, 2013
मीना कुमारी
....और तुम्हारे नाटक से
हम सच के सपने लिख लेते
ग़र तुम्हारा अभिनय भी
मीना कुमारी की तरह जानदार होता.
पटक के रख दो ख्वाब अपने
फिर शराब हाथों में ले
लिख दो चार नगमे.
...और मर जाओ खामोश मौत,
गर तुम मीना कुमारी हो तो.
कौन कहता है
आदमी की ज़रूरत में शामिल
बस एक भूख ही है.
रूह तमाम रिश्तों को ढूंढती है जब
तो ऊँचाई पे चढ़े लोग भी
खा नहीं पाते पेट भर.
मीना कुमारी की तरह.
मेरे हम-शाख़
न गलत तुम, न गलत हम
माना मीना कुमारी न तुम, न ही हम
फिर कभी क्या, छूटते-छोड़ते
'जवानी हमारी लौटाओगे मेहर के साथ?'
Tuesday, October 15, 2013
अन्नदाताओ, कर लो सामूहिक आत्महत्या
देखो, वो लोग जो
महलों में रहते हैं,
एक दिन जब तुम न उगाओगे अन्न
तो खा लेंगे
महलों की दीवारें.
तुम न सहोगे तो
हुक्म चला लेंगे अपनी औरतों पे.
उनके हुक्म से औरतें बन जाएगी पैसे
और खरीद लेंगे
ऎशो-आराम.
देखो तुम्हारे भूखे मरने से
न यहाँ की संसद हिलेगी, न यहाँ के महल.
मैं तो कहता हूँ,
तुम सब एक बार में, एक साथ ही मर जाओ.
एक-एक कर मर
क्यूँ इन्हें अन्न उगा-उगा एहसान जताते हो.
विदर्भ, छत्तीसगढ़, मध्य भारत के अन्नदाताओ
मर जाओ सब,
कर लो सामूहिक आत्महत्या.
मैं देखना चाहता हूँ,
तुम्हारी मौत का तमाशा देखने वाला
यह समाज
क्या खाकर जिंदा रहता है.
Wednesday, October 2, 2013
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