प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Monday, August 26, 2013
Saturday, August 17, 2013
पता करो, जीवन किसलिए मिला था.
जिंदा रहते
ज़र, जोरू, ज़मीन,
मरते-मरते
जन्नत.
आकाँक्षाओं में जीते तुम.
फिर एक मौत
और खामोश होते तुम.
प्रकृति ने तुम्हें
आकांक्षाएं पाल
प्रकृति को ही नष्ट करने
तो जीवन नहीं दिया होगा.
ज़रा पता करो,
जीवन किसलिए मिला था.
ज़र, जोरू, ज़मीन,
मरते-मरते
जन्नत.
आकाँक्षाओं में जीते तुम.
फिर एक मौत
और खामोश होते तुम.
प्रकृति ने तुम्हें
आकांक्षाएं पाल
प्रकृति को ही नष्ट करने
तो जीवन नहीं दिया होगा.
ज़रा पता करो,
जीवन किसलिए मिला था.
Tuesday, August 13, 2013
इश्क और भूख की कवितायेँ
तेरी याद में
रात भर लिखता हूँ कुछ नज्में,
फिर सुबह भूख से बिलख
ब्रेकफास्ट में
तल के खा जाना चाहता हूँ इन्हें.
यकीं करो,
तुम्हारी यादें दो आने की भी नहीं,
न इनपे लिखी नज्में.
....क्यूंकि हर सुबह
ब्रेकफास्ट के लिए
मुझे पैसे खर्च करने पड़ते हैं!
---**---
तेरी यादें
टूटे ज़र्द पत्ते की तरह
बिखर जाती हैं.
उन्हें एहसास नहीं की
मैं भूखा हूँ,
ज़रा रोटियां बन ही बिखरें.
मुझे लगता है,
दो रोज़ के भूखे पेट भी
जिसे रहे याद महबूब,
वो आशिक सच्चा होगा!
मेरी आशिकी
इतनी सच्ची नहीं.
तुम्हारी है क्या??
---**---
अधपके चावल को ही
मुंह में दबाये कचरा बीनते,
कहीं दो आने मांगते
बदले में दस बार दुत्कार
और दो इकन्नियां दबाये आते
बच्चों के बीच से निकल
जब भी मैं लिखता हूँ.
तुमपर इक
अधपकी सी कविता...
अपने वजूद के बेईमानी पे
ज़रा और भी यकीं हो जाता है.
इश्क के आटे से
भूख तो मिटती है...
लेकिन पेट की नहीं.
इश्क के आटे से
रोटियाँ नहीं सेंक सकते 'जानम'.
इश्क को 'पवित्र' जिसने कहा था,
उसका ज़रूर पेट भरा था.
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