कभी कभी बन के बूँदें. सुनाई देती होगी तुम्हें आवाज़ मेरी खनकते बर्तनों में. आहटें दरवाजे पे ज़िक्र करती होगीं मेरा या लफ्ज़ नज़्म के रूप में पढ़ते होगे किसी मैगज़ीन में कभी तो ख्याल मेरे आते ही होंगे. पलटती होगीं मोबाइल कई दफा, 'व्हाट्स एप' में कभी कोई शायद मैसेज छोडूं मैं..... जिक्र तुम्हें अक्सर आता ही होगा मेरा...... दुहराते ज़िन्दगी अपनी!
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आदमी बनना-
इश्क करना-
जीते जी मरना.
इश्क करना-
जीते जी मरना.
सच कहता हूँ खुदा,
इत्ता आसान भी नहीं!
तू भी एक बार बन देख ले.
इत्ता आसान भी नहीं!
तू भी एक बार बन देख ले.
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ये नादां दिल,
ख्याली पुलाव तेरे!
ख्याली पुलाव तेरे!
उफ़! चुभते बहुत हैं,
जब भी मिलते हैं, हकीक़त से.
जब भी मिलते हैं, हकीक़त से.
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दफ़्न,हर नज़्म
करता रहा मैं.
करता रहा मैं.
हर सुबह तू,लिखती रही नज़्म.
ज़िन्दगी,तू बड़ी अजीब चीज़ है.
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तुम मेरे जिस्म में
रख अपने अल्स...
रख अपने अल्स...
भूल गये हो सब.
ज़रा आओ, दुहराओ!
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sketch: by K. Mediani