तुमसे बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से मिला नहीं.
खुद से कितने शिकवे है
पर तुमसे कोई गिला नही.
दिल को काँटा-छांटा,
खुद को टुकडो में बांटा,
दिन अँधेरे कर डाले
तू मुझसे निकला नहीं.
पहले सपने बन बैठा था,
अब आंसू बन हँसता है,
तेरी भी क्या गलती है,
आँखों का कोई सिला नहीं!
मेरे चेहरे में लिपटा,
तेरा अक्स रह गया था.
हर बारिश में भीगे जमकर
फिर भी अब तक धुला नहीं.
आधी रात तुम्हारी थी,
आधी रात मैं भूल गया,
दूर अँधेरे ताका जगकर
ख्वाब पुराना मिला नहीं!
कतरा-कतरा याद भी
हंस-हंस कर आ जाती है,
वक़्त पड़े सब ढलते हैं,
पर इसका रंग पीला नहीं!
पतझड़ में कुछ फूल झडे
बारिश में कुछ खिला नहीं,
तुमसे बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से मिला नहीं.