औंधी पड़ी हसरतों को
समेटता हूँ
तो लगता है
एक 'प्रोग्राम' इन्हें पूरा करने भी
बना पाता.
पूछता हूँ,
ख़ुदा को कहीं
हसरतें बनाने बाले 'सॉफ्टवेर इंजीनियर' की
ज़रुरत तो नहीं!
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लगता है
जिस्म से रूह निकाल
भर दूं कुछ 'प्रोग्राम'.
कुछ इश्क,
कुछ आदमियत,
कुछ नियत.
ख़ुदा के 'प्रोग्राम' में
'वायरस' है कोई.
उम्र के साथ रूह
बेईमान बहुत हो जाती है!