चलो मैं तुम्हारे अल्लाह को
एक चवन्नी में खरीद लेता हूँ.
तुम मेरे ईश्वर को,
चार आने में खरीद लो.
हर उपवास को रोज़े से बदल देता हूँ,
तुम चाँद को उठा
उस कोने में रख दो,
जिससे दिखता रहे हमेशा.
हर रोज़े में
देखना पड़ता है इसे.
और ये करवाचौथ......उफ़! बेचारी सुहागिनें.
रख दो, इसे उस कोने में रख दो!
देखो दिए तो छुओ,
तुम्हारे छूने से बुझते नहीं ये.
मेरे छूने से,
तुम्हारी कोई ईदी बासी भी नहीं हुई.
जमाराह उठा के पटक देते हैं,
रावन इस बार नहीं बनाते.
पापों को लताड़ना क्या
जब वो हममें-तुममें
सामान हज़ार बरस से बैठा है!
चलो इस बार
तुम अपनी दाढ़ी काट लो,
मैं अपनी चोटी काटता हूँ.
मैं जनेऊ फेंकता हूँ,
तुम टोपी फेंक दो.
आदमी को आदम सा दिखने तो दो ज़रा,
क्या-क्या नकाब पहनेंगे.....?
चलो मेरी आँखों की
नफरत मोहब्बत से रंग दो तुम.
मैं तेरी आँखों का तीखापन
प्यार से धकेलता हूँ.
इस बार गले मिलते हैं,
....लड़ेंगे फिर कभी.
या कभी नहीं.
एक चवन्नी में खरीद लेता हूँ.
तुम मेरे ईश्वर को,
चार आने में खरीद लो.
हर उपवास को रोज़े से बदल देता हूँ,
तुम चाँद को उठा
उस कोने में रख दो,
जिससे दिखता रहे हमेशा.
हर रोज़े में
देखना पड़ता है इसे.
और ये करवाचौथ......उफ़! बेचारी सुहागिनें.
रख दो, इसे उस कोने में रख दो!
देखो दिए तो छुओ,
तुम्हारे छूने से बुझते नहीं ये.
मेरे छूने से,
तुम्हारी कोई ईदी बासी भी नहीं हुई.
जमाराह उठा के पटक देते हैं,
रावन इस बार नहीं बनाते.
पापों को लताड़ना क्या
जब वो हममें-तुममें
सामान हज़ार बरस से बैठा है!
चलो इस बार
तुम अपनी दाढ़ी काट लो,
मैं अपनी चोटी काटता हूँ.
मैं जनेऊ फेंकता हूँ,
तुम टोपी फेंक दो.
आदमी को आदम सा दिखने तो दो ज़रा,
क्या-क्या नकाब पहनेंगे.....?
चलो मेरी आँखों की
नफरत मोहब्बत से रंग दो तुम.
मैं तेरी आँखों का तीखापन
प्यार से धकेलता हूँ.
इस बार गले मिलते हैं,
....लड़ेंगे फिर कभी.
या कभी नहीं.
7 comments:
Awesome lines. Enough to make me your fan.
काश ऐसा हो ॥बहुत सुंदर विचार लिए हुये रचना
Outstanding is the word!!
रावन इस बार नहीं बनाते.
पापों को लताड़ना क्या
जब वो हममें-तुममें
सामान हज़ार बरस से बैठा है!
आदमी को आदम सा दिखने तो दो ज़रा,
क्या-क्या नकाब पहनेंगे.....?
just too good :)
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 06-09 -2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....इस मन का पागलपन देखूँ .
वाह,,,बेहतरीन रचना.....
इस ख़याल पर बहुत कुछ लिखा जाता है...मगर ऐसी सुन्दर अभिव्यक्ति.....!!!
बहुत बढ़िया..
अनु
सुन्दर विचार लिए अभिव्यक्ति..
काश ऐसा हो जाये...
:-)
इतने सार्थक एवं संवेदनशील लेखन के लिये आपकी कितनी सराहना करूँ शब्द कम पड़ रहे हैं ! बहुत ही सुन्दर लिखा है ! काश आपका दिया सन्देश इन दिलों तक ज़रूर पहुँचे जो नफरत से भरे हुए हैं और जिनके मन मस्तिष्क आज भी धरम करम की श्रंखलाओं से जकड़े हुए हैं ! शुभकामनायें !
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