तुमने छुआ मुझे फिर....वैसे ही उन्नींदे.
जैसे, तारकों के बीच से,
कोई नई आकाश गंगा चमक उठी हो.
या गंगासागर तक का सफ़र गंगे ने
कर लिया हो तय, पल में ही.
चाँद शक्ल बदलता रहा, हर रात....अनवरत.
लेकिन तुम नहीं बदले,
इत्तेफाकन, देखो मैं भी नहीं बदला!!
सच तो ये है, तुम्हारी चाह ने मुझे बदलने नहीं दिया,
और तुम्हें तुम्हारे अहं ने.
मैं अब भी वहीं हूँ, तुम्हारी आस में.
तुम अब भी वहीं ठहरे बेगानी तलाश में!
तुमने छुआ मुझे फिर....वैसे ही उन्नींदे,
नींद के आगोश में, मैंने भी.
तुम्हें नहीं लगता, ये नींद टूटे ख्वाब ही दिखाती है.
जो सपने सच हो जाते हैं, वो नींद में कहाँ आते हैं!
जैसे, तारकों के बीच से,
कोई नई आकाश गंगा चमक उठी हो.
या गंगासागर तक का सफ़र गंगे ने
कर लिया हो तय, पल में ही.
चाँद शक्ल बदलता रहा, हर रात....अनवरत.
लेकिन तुम नहीं बदले,
इत्तेफाकन, देखो मैं भी नहीं बदला!!
सच तो ये है, तुम्हारी चाह ने मुझे बदलने नहीं दिया,
और तुम्हें तुम्हारे अहं ने.
मैं अब भी वहीं हूँ, तुम्हारी आस में.
तुम अब भी वहीं ठहरे बेगानी तलाश में!
तुमने छुआ मुझे फिर....वैसे ही उन्नींदे,
नींद के आगोश में, मैंने भी.
तुम्हें नहीं लगता, ये नींद टूटे ख्वाब ही दिखाती है.
जो सपने सच हो जाते हैं, वो नींद में कहाँ आते हैं!