ख़ुशी
वो मिले मुझे
तो गिरेबाँ पकड़ मांग लूं गम,
अब ये ख़ुशी बर्दाश्त नहीं होती!
लिखते-लिखते सुफियानापन आ गया है!!
धूप
धुल-धुल के चमका दिया रौशनी ने,
पड़ोस से एक सितार और मांग ला.
गुनगुनाती सुबह मैं तुझे
इश्कियाना गीत की ज़रुरत है!
अवसाद
मुंडेरें बची होती तो
कह पाता कभी,
'मैं पंछी हूँ मुंडेरों का'.
चमकती इमारतों के बीच,
टूटी झुग्गी सा लगता हूँ मैं,
जैसे कोई सारे रंग चुरा ले गया हो!
आदमियत
गणेशजी पूज लिए सोते वक़्त,
अब भरोसा नहीं रहा आदमियत पे,
क्या पाता कौन बारूद
सांस खींच ले नींद में ही!
इश्क
तेरे इनकार को कैसे मैं मान लूं!
आँखें तो इरादे और कह रही हैं,
जैसे नींद के आगोश में भी,
सपने मेरे देखे हों.
चांदनी से बनाई हो,
मेरी उजली तस्वीर.
....और आखिर में
पन्ने के पन्ने काले कर दिए हों,
मजबूरी की स्याह से!
फिर भी मंजूर है मुझे तेरे हर फैसले!
......क्यूंकि तेरे इरादे तो सही हैं.
प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Monday, November 29, 2010
Sunday, November 21, 2010
आदतें...
1.
दूर जाना चाहूँ तो,
आफतों की तरह
इठलाती आती है तू!
जैसे मुझपर सिर्फ तेरा हक है!
मुस्कुराता हूँ मैं,
आफतें भी अच्छी लगती हैं फिर!
2.
भूलना चाहूँ तो,
धुंए की तरह
छा जाती है तू!
तेरी यादों के धुंध से,
भर जाता हूँ मैं!
3.
रुलाना चाहूँ तो,
खिलखिलाती है तू!
जैसे रातरानी झड़ रही हो चाँदनी मैं!
बचपन की बिसरी सी,
परीकथाएँ सच लगने लगती है फिर!
4.
छूना जो चाहूं तो,
छुईमुई की तरह
शर्माती है तू!
अचंभित मैं!
बस देखता रह जाता हूँ तुझे.
5.
पाना चाहूँ तो,
बादल की तरह
भिखर जाती है तू!
बूंदों से सरोबार,
पुलकित हो उठता हूँ मैं!
6.
हँसाना चाहूँ तो,
ढले सूरजमुखी की तरह
मुरझाती है तू!
मैं घबराता हूँ तो,
मेरी हालत पे खिलखिलाती है.
ज्यों सूरज फिर उग आया हो!
7.
सरबती पलों में कभी,
लहरों की तरह बह जाती है तू!
तट पर ठिठुरता मैं,
बस राह तकता रह जाता हूँ !!
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ishq
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