वक़्त से निकल कुछ लम्हे
यादों में खोये हुए
कहते कुछ बातें प्यारी-
जैसे सपने जागे-जागे,
जैसे अरमान गूंजे-गूंजे
जैसी खुशियाँ बिखरी-बिखरी
जैसे जीवन संवरा-संवरा.
जैसे डाली डोली डोली,
फूलों पे मंडरे भँवरा.
उन्नीदी सी रात ये
जैसे गाती गीत मल्हार,
जैसे चाँद प्रेयसी बन,
छू जाता, करता प्यार.
आँखों में, हंसी में आज
एक अजीब नयापन है.
बूंदे हैं बिखरी-बिखरी,
मौसम में अपनापन है.
इतारये इस दिल ने,
एक घरोंदा पाया है.
छोटे से घरोंदे का,
हर तिनका अपना पाया है.
आज कुछ सजीव लम्हे,
बरसों बाद जिए हैं फिर.
खुशियाँ बटोरकर सारी,
लम्बी प्यास कर लूँ तर!
9 comments:
आँखों में, हंसी में आज
एक अजीब नयापन है.
बूंदे हैं बिखरी-बिखरी,
मौसम में अपनापन है.
बहुत खूब ...हवा और वक़्त का बदलना यूँ दिल के मौसम को भी बदल देता है ...
truly speaking the 1st,2nd and 3rd para are mindblowing...expressions,emotions,vocab,imagination...everything is superb
जैसे अरमान गूंजे-गूंजे
जैसी खुशियाँ बिखरी-बिखरी
जैसे जीवन संवरा-संवरा.
जैसे डाली डोली डोली,
फूलों पे मंडरे भँवरा....wow
उन्नीदी सी रात ये
जैसे गाती गीत मल्हार,
जैसे चाँद प्रेयसी बन,
छू जाता, करता प्यार....hats off
but but but..i did not liked the end...that's my personal opinion...
@ranju ji...thnx for comment
@saumya........thanks dear, thnx for such a nice comment.....im going to change last para.
वक़्त से निकल कुछ लम्हे
यादों में खोये हुए
कहते कुछ बातें प्यारी-
जैसे सपने जागे-जागे,
जैसे अरमान गूंजे-गूंजे
जैसी खुशियाँ बिखरी-बिखरी
जैसे जीवन संवरा-संवरा.
जैसे डाली डोली डोली,
फूलों पे मंडरे भँवरा.
pahli baar aayi hun aapke blog par...aur bahut khushi hui hai aapki bahut hi saundar si kavita padhkar..
aap bahut aacha likhte hain...bas aise hi likhte rahein...
shukriya..!
अच्छा लिखते हो दोस्त...आशा करता हूँ कि यूँ ही विकास पथ पर अग्रसर रहोगे
आज कुछ सजीव लम्हे,
बरसों बाद जिए हैं फिर.
खुशियाँ बटोरकर सारी,
लम्बी प्यास कर लूँ तर!
bahut khoob ....!!
विवेक जी ...बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने
इसके लिए आपको आभार .......
@Ada ji...thnx 4 this visit....keep reading...i wanna reach ur level.....
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