चलो इस सावन में सभी भीग लो.
अच्छा है वह अल्लाह-राम का नाम ले
नहीं बरसता.
गिरने से पहले बूँदें
हमारी जात नहीं पूंछती.
होली के रंग जैसे
उसके छींटे सिर्फ चंद लोगों पे नहीं पड़ते.
ना ही वह रंग-भेद करता है.
चलो अच्छा है,
पानी तो हमें एक कर देता है.
तुम्हारे शरीर से बह बूंदें,
दुसरे को छूती हैं
तो जात नहीं पूंछती.
चलो अच्छा है,
हम सावन में तो साथ भीग सकते हैं.
बिना जात-पात के,
बिना रंग-भेद के,
बिना अमीरी के,
गरीबी के.
चलो इस सावन में सभी भीग लो,
क्या पता अगला जात पूंछ कर आये.
क्या पता,
सरकारें उसे भी सरहद की तरह बाँट दें.
जात-पात समझने लगे सावन,
उससे पहले ही
इस बार भीग लो.
अगली बारिश शायद तुम्हारी जात बालों को ना हुई तो!!!
20 comments:
खूबसूरत पोस्ट
sawan me ab tak sirf man hi bheegta tha...lekin pahli baar yesi abhivyakti padi.
bahut sundar rachna..
jaat-paat samajhne lge sawan
usse pahle hi, bheeg lo.
bahut sundar, yese hi likhte rahiye.
shubh kamnayein.
tumhari post ka intezaar rehta hai......hamesha.
lgta hai, tumhare dil se jo shabd niklenge, kahi na kahi nerang samaaz par chot zaroor karenge.
Discrimination is not possible by nature, because there is no minority and majority.
sawan aise hi barsega humesha, nishchint rahiye..
@Divya, kal kisne dekha, kya pta kal prakriti badal gai to!!!!!! :)
vaise, poem is all abt cast system.
@Jandunia, thanx ji..
@Sangeeta ji, thanx for appreciation.
@Ek Rahi, chalo aapne swan me man ke alawa dil to bhigoya.:)
good one Vivek!! saw your other blog too.. Its great to read your burning thoughts.. Let them cming..
सुंदर ब्लॉग और गहरे भावों को समेटे चिंतनपरक रचना
Beta, ye 'sawan' ko badnaam to na kar..... chal be saane is sawan me bheega to shardi lag jayegi.
vaise apne bundelkhand me to barish nhi ho rhi h, to bheegu kaise!!! :((
@pankaj, thnx pankaj ji.
@rakesh ji, sir, thnx 4 appreciation, hindi me vo baat h ki kam shabdo me b gahre bhav a pate hai.
चलो इस सावन में सभी भीग लो,
क्या पता अगला जात पूंछ कर आये.
क्या पता,
सरकारें उसे भी सरहद की तरह बाँट दें.
..thought provoking lines...
nice read...lets hope that atleast our generation will be free from casteism
'जाति पाति पूछे नहि कोई। हरि को भजे सो हरि का होई। अरे जात पात की अवधारणा उनके कर्मों के आधार पर बनी थी जो अब संप्रायिक झगड़े का पर्याय बन चुकी है। रचना बहुत सुन्दर।
करारा व्यंग्य।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति और क्या खूबसूरत शब्द सयोंजन है.क्या कटाक्ष है!!!!!!! जिगर के आर पार निकल गया.... आभार
@saumya, yep, im waiting for the moment when our whole generation will oppose it.
i think this quota system is also responsible for caste-ism.
@suryakant ji, कर्मो कि अवधारणा पहले थी लेकिन धीरे-धीरे ये नासूर का दर्द बन गई और चंद पे पहुँचने के ४० साल बाद भी हम ये नही मिटा सके है.
आप पहली बार आप यहाँ आये हैं. आपके valuable comments का इंतज़ार रहेगा
@vandana ji, thanx for ur valuable comment.
@rachna ji,आपने लिखा 'जिगर के आर-पार निकल गया' इसके लिए बहुत-बहुत आभार.येसे ही appreciate करते रहिये. धन्यबाद, आभार
nice post,.,.,.
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