मैं और मेरे पिता
पिता की आँखें,
वो दीर्घ में देखती आँखें.
आँखों में पलता सपना-
की पाऊं में सफलता.
उन्होंने जो किया संघर्ष,
वो न करना पड़े मुझे!
लड़ना न पड़े मुझे.
मैं-नालायक
संघर्ष नियति मान करता हूँ.
अपना सपना पाल
खुद के लिए लड़ता हूँ.
अब,
हमारे सपने टकरा गये.
उनका सपना दीर्घ, मेरा सपना शुन्य,
उनकी नज़र में यह बूँद!!
मैं जीते या वो, नहीं पता.
पर मैं सफलता पा गया,
पा के इठला गया.
मैं सोचता हूँ,
वो देखते-मैं कितना खुश हूँ,
अपना सपना साकार कर,
पा सफलता अपने आधार पर.
वो सोचते हैं,
काश! बेटा देखे,
वो खुश हैं, उसकी लगन से,
उसने पाया, जो चाहा मन से.
लेकिन,
मैं दुखी हूँ, उनका सपना न साकार कर,
वो दुखी हैं, सपने थोपने के आधार पर.
हम,
खुश हैं,भीतर से,
दुखी, बाहर से.
मैं, पिता और ये अटूट बंधन,
हँसता, इठलाता ये जीवन.
8 comments:
pa ki yaad mujhe b ati h, kash me b tumhari tarah ye kah sakta.
ya, kshitij, pa ki yaad hme b ati hai, kabhi kabhi unhe b..but dono hi kah nhi paate.
aadmi hain na!! kam emotional hote hain.
this is the biggest example of ur emotions...
u hv a good writing skill.......keep it up...
emotions ..... kuchh ander ke aur kuchh bahar ke , badiya darshaye aapne ...
bahiya likhte ho,
Shubhkamnayen..........
rishte samajhne ka aur samjhane ka accha zareeya hai yeh kavita.....kash tumhare pita bhi ekhe.........
shubhkamnayen
ji, kash vo dekhte...i m waitin 4 it.
bahut acchchaa.....
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